*वन विभाग की सांठगांठ से जंगल मे हरे पेड़ो की हो रही अंधाधुंध कटाई*
सरीला (हमीरपुर ) सरीला क्षेत्र के जंगलो मे इस समय हरे पेड़ो की कटाई चरम सीमा पर हैं। बताते चले की वेतवा नदी मे हो रहे खनन के चलते माफियों ने जंगल को निशाना बना लिया हैं। रास्तो मे बालू से भरे ट्रकों के निकलने के कारण सड़के धस जाती हैं जिसके चलते रास्ता तैयार करने मे जंगल के हरे पेड़ो को कटवाकर ट्रैक्टरो द्वारा दिनरात ढोया जा रहा हैं। जानकारी के मुताबिक क्षेत्र के बसरिया गांव मे रोपे गये पौधों को वन माफियों द्वारा पुरे तरह से काट लिया गया हैं जहा जंगल मे कंकरीट और मिट्टी नजर आती हैं। वही हरसुंडी और खंडोत गांव मे अभी भी एक दर्जन से अधिक ट्रैक्टरो द्वारा जंगल के हरे पेड़ो को काटकर नदी मे रास्ता बनाने के उपयोग मे लाया जा रहा हैं। मजे की बात तो यह हैं की जंगल के रखवाले रूपये लेकर जंगल का अमंगगल करने मे कतई नहीं चूक रहे। जानकारों की माने तो सरीला रेंज मे तैनात जंगल कर्मचारियों को इन माफियों पर संरक्षण प्राप्त हैं जिसके चलते दिन रात बेखौफ होकर हरे पेड़ो की कटवाकर वन सम्पदा नस्ट करने मे लगे हुये हैं। विभाग पुराने पेड़ बचाने की बजाय नये लगाने की योजनाओं पर ज्यादा जोर देता है।
ग्लोबल-वार्मिग की समस्या से जूझ रही दुनिया के लिये पर्यावरण असंतुलन खतरा बन गया है। अंधाधुंध काटे जा रहे वृक्षों से सिमट रहे जंगल इसका प्रमुख कारण है। फिर भी कोई चेतने को तैयार नहीं हैं। ऐसा नहीं कि पर्यावरण संतुलन के लिए सरकारी योजनाएं नहीं हैं। इसको लेकर तमाम योजनाएं बनी हैं, बावजूद धरती सूनी ही है।
पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा देने में कई तरह के कारक शामिल हैैं। इसका अहसास भी हो रहा है। बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है, जिससे सरकारी या गैर सरकारी सभी योजनाएं अथवा अभियान फाइलों तक सिमट कर रह जाता है। रातो-रात धनवान बनने की चाहत और सुविधा का उपभोग करने की ललक में न केवल पेड़ों की कटाई हो रही है बल्कि काटे गये पेड़ की जगह दूसरा पौधा लगाने की फिक्र भी नहीं है। सरकारी स्तर पर वृक्षारोपण में स्थानीय लोगों का जुड़ाव नहीं हो पाता। एजेंसियां पेड़ लगा कर चली जाती हैं और बाद में उसमें कोई पानी देने वाला भी नहीं रहता। इन जगहों पर नियमित रूप से वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है।
मनरेगा से वानिकीकरण
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत तालाब व सड़कों के किनारे पौधे लगाये गये हैं। प्रशासनिक आंकड़ों के मुताबिक मनरेगा से पिछले और इस वर्ष लांखो के तादाद मे पौधे जिले में लगाये गये थे। जिसमें कितने सूखे तथा कितने अभी जिंदा हैं यह बताना मुश्किल है। ज़ब डिस्ट्रिक्ट फारेस्ट ऑफिसर अनिल कुमार श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की तो उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।